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कभी सोचा था मैं उसे साइकिल सीखाऊंगा, वो मासूम आज मेरी व्हील चैयर चला रहा है

कभी सोचा था मैं उसे साइकिल सीखाऊंगा, वो मासूम आज मेरी व्हील चैयर चला रहा है
@HelloBanswara - -

Banswara December 04, 2017 भोपाल गैस त्रासदी : 33 साल 15000 मौत और अब भी न्याय का इंतजार

मैं एक पिता हूं, जिसने कभी सोचा था कि मैं अपने बेटे को इस कदर दौड़ना सीखाऊंगा कि वह देश के लिए गोल्ड लाएगा। लेकिन वो एक रात जिसने मुझे उस मासूम के कंधे के सहारे चलने को मजबूर कर दिया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी ऊंगली पकड़कर चलना सीख रहा मेरा बेटे के कंधे के सहारे से मुझे चलना पड़ेगा। कभी मैं उसकी साइकिल को पीछे से पकड़कर उसे साइकिल सीखाना चाहता था, आज वो मेरी व्हील चैयर को चला रहा है। मेरे कुछ शहरवासी तो भगवान के पास चले गए, लेकिन कुछ मेरे जैसे हैं जो आज भी अपने मुर्दा अरमानों के साथ परिवार पर बोझ बने हुए हैं। वो रात याद है, जो मुझे आज भी सोने नहीं देती है। 3 दिसंबर 1984 की वह रात जब

हाईटेक होना हमारे लिए 15,000 मौतों का कारण बन गया।

करीब 5 लाख 58 हजार 125 लोग इस गैसकांड की वजह से प्रभावित हुए इस पूरे मामले में सरकार ने अपनी ओर से कुछ और ही बयां किया। अधिकारिक आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए, तो इसमें मरने वालों की संख्या केवल 2207 की बताई गई। सरकार ने सभी स्थिति को जानने के बाद 3786 लोगों की मरने की पुष्टि तो कर दी, पर इससे देश नहीं संतुस्ट था। आखिर कार गैर सरकारी अांकड़ों की मदद लेनी पड़ी और उसके बाद जो सच सामने आया वो हम सबके लिए चौकाने वाला था। जब सचाई सामने आने लगी तो पता चला की इस गैसकांड में मरने वालों की संख्या करीब 8000 निकली। 1984 में हुई इस घटना के करीब 22 सालों के बाद सरकार को एहसास हुआ कि इस त्रासदी में 5 लाख 58 हजार 125 लोगों इस गैसकांड के शिकार हुए थे। सरकार ने अपने शपथ पत्र में बताया की 3 दिसंबर की रात भोपाल में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसने से हजारों लोग इसका शिकार हुए और आज भी भोपाल में इस हादसे के शिकार हुए परिवारों के चहरों पर उस रात का डर देखा जा सकता है। आज भी गैस त्रासदी के शिकार परिवार उनके पूर्वजों को याद कर अपनी दशा और गैस कांड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए सरकार और न्यायपालिका की चौखट पर नजर झुकाए बैठे दिखाई देते है। हादसे के बाद से अब तक उस भयानक रात की सुबह नहीं हो पाई है। हजारों लोगों की मौत का सही कारण तो मैं आपको नहीं बता सकता पर जो भी उस रात हुआ, उसके लिए कोई तो है जो जिमेदार है और वो इस हादसे में शिकार लोगों को निहता छोड़ कर अपनी जिमेदारी से भागा है। उसके चेहरे पर अब भी न्यायालय का नकाब लगा हुआ है और ना जाने कब वो इस नकाब से बेपर्दा होगा और हजारों लोगों जो मौत के मुंह में चले गए है, वो लोग जो इस हादसे में बुरी तरह से जख्मी हालत में अपने ही जवान को कोस कर अपने परिवार के लिए जी रहे है।  जब जब 2 दिसंबर का दिन आएगा तब तक हजारों लोगों की चीख हमें सुनाई देती रहेंगी। तब तक हमारी आंखों में वह भयानक तस्वीर घर कर जाएगी। जिसमें गैस रिसाव के शिकार से रोते बिलखते सड़कों पर दौड़ते तड़पते हजारों लोग दिखाई देंगे। पर अब तक उनको न्याय नहीं मिलना उनके साथ साथ हमारे लिए भी शर्मिंदगी की बात है। उस दिन हुई इस घटना का न्याय तब तक नहीं मिल पाएगा, जब तक हमारे लिए यह दिन बस शर्मिंदगी का ही रहेगा। जून 2010 में सीजेएम अदालत यूको के अधिकारियों को दोषी ठहराया था और फिर अदालत बदलती गई। यूको के सदस्य जमानत पर घूमते रहे, कोर्ट की तारीख बढ़ती गई, पैसे और सबुत ना होने की वजह से कोर्ट में यूको के अधिकारियों को रिहा रहने दिया और कोर्ट की तारीख बढ़ती रही। फैसला अब तक नहीं हुआ और ना ही उन लोगों को न्याय मिला जिनकी जान इस हादसे में गई और ना ही उन बेकसूर लोगों को जो इस गैस की चपेट में आने की वजह से आज एक बुरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। अपराधी रिहाई में जीवन बिता रहे हैं, गैस त्रासदी में शिकार कुछ लोग मौत को पा गए हैं तो कुछ गैस की समस्या से अपने शरीर के अंगों को गवा चुके है। सरकार के वोटर कम हो चुके हैं, इसलिए उनके लिए मुद्दा किसी काम का है नहीं और 1984 से 2017 तक न्यायालय में ही गैस प्रभावित परिवार दर्द और बिना मरे भी मौत से बदतर जिंदगी जी रहे हैं।

भोपाल के ही साहित्य के बड़े नाम दुष्यंत कुमार ने कभी कहा था...

परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं
हवा में सनसनी घोले हुए हैं
तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो
क़ुरान—ओ—उपनिषद् खोले हुए हैं
मज़ारों से दुआएँ माँगते हो
अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं
हमारे हाथ तो काटे गए थे
हमारे पाँव भी छोले हुए हैं
कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल
सियासत के कई चोले हुए हैं
हमारा क़द सिमट कर मिट गया है
हमारे पैरहन झोले हुए हैं
चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे
तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं

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