Home News Business

हम इतने मासूम हैं कि नहीं, नही जानते कि बलात्कार की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?

हम इतने मासूम हैं कि नहीं, नही जानते कि बलात्कार की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?
@HelloBanswara - -

Banswara April 21, 2018 - आपने बलात्कार के मुद्दे पर असंख्य टीवी डिबेट देखें होंगे, पर यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि किसी डिबेट में बलात्कार को रोकने के उपायों पर चर्चा नहीं होती। होता है बस इतना, कि भाजपा वाले कांग्रेस को दोषी ठहराते हैं, कांग्रेस वाले भाजपा को अपराधी घोषित करते हैं, बड़ी बिंदी वाली कुछ महिलाएं समूची पुरुष जाति को दोषी ठहराती हैं, कोई पूरे देश को दोषी ठहराता है, और इसी लीपापोती के साथ डिबेट समाप्त हो जाता है।

मैं कभी कभी सोचता हूँ, क्या सचमुच हम इतने मासूम हैं कि नहीं, नही जानते कि बलात्कार की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?
एक छोटा सा उदाहरण देखिये। बच्चों के एक रियलिटी शो में एक प्रतिभागी बच्चा लड़कियों के गाल नोचता है, तो अतिथि बन कर आये सलमान खान लहालोट हो कर कहते हैं "बाप रे बाप! यह बच्चा नहीं पूरा का पूरा आदमी है।" खूब तालियां बजती हैं, बच्चा खुशी से नाच उठता है। अब बताइये कि आगे वह बच्चा और टीबी देखने वाले सभी बच्चे लड़कियों को गाल नोचने की बस्तु न समझेंगे तो क्या समझेंगे?

आप नब्बे के दशक की कोई भी फ़िल्म उठा कर देख लीजिए, हीरो गाना गाते हुए हीरोइन का दुपट्टा खींचता है, उसकी स्कर्ट खींचता है, उसे गोद मे उठा लेता है, हीरोइन भागती है पर हीरो उसे दौड़ा दौड़ा कर यह सब करता है। ये सारी हरकतें "अटैक फॉर रेप" के दायरे में आती हैं, पर बॉलिवुड उसे प्रेम बताता है। ऐसा करने वाला सुअर हीरो कहलाता है। आज के दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी यही होता है। आपको क्या लगता है, यह देख कर बड़ी हुई पीढ़ी आगे क्या करेगी?
श्रीमान! मुम्बई फिल्मोद्योग ने बलात्कार को स्थापित कर दिया है। टीबी और सिनेमा देख कर बड़ी हुई पीढ़ी के दिमाग में बस गया है बलात्कार। 

आप अपने अगल बगल निहारिये, लड़कियों के छेड़ने वाले जितने जुमले हैं वे कहाँ से निकले हैं? सारे के सारे फिल्मों से आये हैं। ज्यादा पीछे मत जाइए, आज भी लगभग हर फिल्म में हीरोइन को हीरो "माल" कहते हैं। और इन्हीं हीरोज को हमारी सरकारें पद्मभूषण और पद्मविभूषण देती हैं। और आप पूछ रहे हैं कि स्त्रियों का अनादर क्यों हो रहा है?
कहीं पढ़ा था, यू ट्यूब पर फिल्मों के बलात्कार वाले दृश्य सबसे ज्यादा बार देखे जाते हैं। क्या लगता है, यूट्यूब पर बलात्कार देखने वाला स्त्री का आदर करेगा? आपने कभी सोचा कि बॉलिवुड बलात्कार के वैसे दृश्य क्यों फिल्माता है? उसे बेचना है, वह बेचता है...
अभी कुछ दिन पहले ही एक खबर आई थी कि एक चार साल के लड़के ने बलात्कार किया। तनिक सोचिये तो, बलात्कार भी कोई बस्तु है यह उस मासूम के दिमाग में कहाँ से गया होगा?
एक ही उत्तर है- टीवी से।

ध्यान से देखिये, लगभग अस्सी फीसदी विज्ञापनों में स्त्री को नग्न रूप में ही परोसा जा रहा है। साबुन, तेल, सेंट, यहां तक कि एसी के विज्ञापन में भी...
क्या असर होगा देखने वाले समाज पर?
आज कोई ऐसी फिल्म नहीं आ रही जिसमें कम से कम 20 मिनट के ऐसे दृश्य न हों। फिल्मों की छोड़िये, पारिवारिक कहे जाने सीरियल की भी वही दशा है। कॉमेडी के नाम पर जो परोसा जा रहा है वह क्या है? एक घण्टे के एपिसोड में कपिल शर्मा लगभग बीस बार शारीरिक सम्बन्धों की ओर भद्दे इशारे करता है। क्या असर होगा देखने वाले समाज पर?
आज आधे लोगों के पास टीवी है, नब्बे फीसदी युवाओं के पास बड़े मोबाइल हैं। क्या असर होगा?
भाई जी! आज भारत में जो बलात्कार की संस्कृति उपजी है न, वह पूरी तरह इस फिल्मी दुनिया की देन है। वरना भारत तो वह देश हैं जहाँ गाँव से नजदीक के तीन गांव तक विवाह न करने की रीत रही है। गांव को छोड़िये, पचास कोस दूर के सगोत्रीय की बेटी भी रिश्ते में बहन होती है यहाँ। चंद अपवादों को छोड़ दें तो आज भी बेटी पूरे गांव की होती है यहां... बलात्कार पूरी तरह फिल्मी देन है।
पिछले तीस चालीस वर्षों में देश की युवा पीढ़ी के दिमाग में भर दिया गया है कि नग्नता ही आधुनिकता है। आप किसी लड़की के छोटे कपड़ों पर कुछ कहिये तो आपको संकुचित मानसिकता वाला घोषित कर दिया जाएगा। टीवी पर देखिये, पुरुष पूरे कपड़े में है, स्त्री नग्न है। उसके दिमाग मे भर दिया गया है कि नग्नता ही सौंदर्य है। अगर वह पूरे कपड़े न पहनें तो "बहन जी" है। किसने भरी यह सोच? बॉलिवुड ने।

तनिक सोचिये तो, सृष्टि में एक मनुष्य ही है जो कपड़े पहनता है। क्यों?
तनिक अजीब है पर सत्य है कि मनुष्य को छोड़ कर हर जीव की संतान रेप से ही जन्म लेती है। मनुष्य रेप नहीं चाहता, इसीलिए कपड़े पहनता है।

खैर...
टीबी के डिबेट में कभी इस बात पर सार्थक बहस नहीं होती कि रेप रुकेंगे कैसे, क्योंकि सार्थक बहस हुई तो सब नंगे हो जाएंगे।
इसी देश का कानून एक बलात्कारी को सिलाई मशीन इनाम में देता है, कैसे रुकेगा रेप?
इसी देश के हरामखोर बुद्धिजीवी रेपिस्टों की फाँसी का विरोध करते हैं, कैसे रुकेगा रेप?
रेपिस्ट के पक्ष में केस लड़ने और गलत साक्ष्य प्रस्तुत करने वाले वकील पर कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं, कैसे रुकेगा रेप?
देश के हरामखोर बुद्धिजीवी लड़कियों को छेड़ने वाले मनचलों को पकड़ने वाले पुलिस दस्ते का विरोध करते हैं, कैसे रुकेगा रेप?
पोर्न साइट्स को बंद करने के प्रस्ताव के विरोध में समाज के घोषित बुद्धिजीवी उतर आते हैं, कैसे रुकेगा रेप?

रेप के केस में सजा आने में 25 साल लगते हैं, कैसे रुकेगा रेप?
50 फीसदी घरों में पहुँच चुका सिनेमा रेप को प्रमोट करता है, कैसे रुकेगा रेप?
सीधी सी बात है, जबतक आप टीवी और सिनेमा पर अंकुश नहीं लगाएंगे, आपके देश में रेपिस्ट पैदा होते रहेंगे। जबतक आप पन्द्रह दिन के अंदर रेपिस्ट की सजा का कानून नहीं बनाते तबतक नहीं रुकेगा रेप। तनिक सोचिये तो, रेप केस में यदि तुरंत फॉरेंसिक जांच हो तो बिना किसी बहस के पन्द्रह दिन में सत्य सामने नहीं आ जायेगा क्या? फिर दस साल का ट्रायल क्यों?
पिछले तीस वर्षों में सिनेमा ने देश को ऐसा बना दिया है कि कम से कम पच्चीस फीसदी लोग ऐसे हैं जो मौका मिलने पर रेप कर सकते हैं। रेप को रोकना है तो सिनेमा को रोकिए।

एक बात और, अभी भी भारत रेप के मामले में दुनिया के अधिकांश देशों से बेहतर है। और वह सिर्फ इसलिए कि अभी देश के लोग अपने बच्चों को इससे बचाने का प्रयास करते हैं, उनमें मनुष्यता का संस्कार भरते हैं। ये जो नचनिये सुअर तख्ती ले कर बलात्कार के नाम पर शर्मिंदा होने का ढोंग कर रहे हैं न, ये तो इस लायक भी नहीं कि इस विषय पर बोल सकें।

शेयर करे

More article

Search
×