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डिबेट की दुकान पर धर्म बिकता है, जनता की समस्याओं का यहां नहीं कोई खरीददार

डिबेट की दुकान पर धर्म बिकता है, जनता की समस्याओं का यहां नहीं कोई खरीददार
@HelloBanswara - -

Banswara December 02, 2017  धर्म। सिर्फ एक ही शब्द काफी है किसी भी दो लोगों को जोड़ने या पूरा दिन बातों में बिताने के लिए। या यूं कह दो कि लड़ाई कराने के लिए। हर कोई अपने धर्म को बड़ा और सही बताता है। वो बात अलग है कि सभी धर्म एक ही बात बोलते है कि इंसान ही इंसान के काम में आता है। इसके बावजूद हम सभी धर्म को लेकर लड़ते हैं। डिजिटल युग में आजकर अधिकतर छोटी-छोटी बातों पर न्यूज चैनलों पर धर्म पर डिबेट शुरु हो जाती है। इसमें चार महत्वपूर्ण लोगों को लिया जाता है, पहला दो तो धर्म के ठेकेदार, दूसरा चार अलग अलग पार्टी के नेता, और तीसरा वह व्यक्ति जो जो हर सवालों का तोड़ जानता हो और हर नेता को गलत साबित करने का उसके पास हुनर हो। ऐसा जैसे वह कई किताबों को घोलकर पी गया हो, इसके बाद अंतिम होती है एंकर। जो खूबसूरती से एक को चुप कराने के बाद दुसरे को बोलने के लिए कह दें। बस इसमें ही सिमट कर ख़त्म हो जाती है एक महत्वपूर्ण विषय पर शुरु हुई चर्चा। आखरी में फिर भी एंकर वही सवाल आप पर थोप के चली जाती है। क्या ये जो हुवा है सही था? क्या इस तरह से हम देश में अशांति को बढ़ा रहे हैं? पूरी डिबेट होने के बाद भी समस्या एक सवाल ही रह जाती है। तो जो पूरी दिन इन सभी जिम्मेदार नागरिकों ने चर्चा की वो क्या थी? उसका नतीजा क्या निकला? फायदा हुआ तो बस चैनल को। बढ़ी तो उसकी टीआरपी। जहां न तो किसी की समस्या को बताया गया और न ही कोई सुनना चाहता है। एक परेशान पिता तो आज भी उसी उस जदोजहद में लगा है कि शाम के लिए खाने के लिए आज थोड़ी और ज्यादा मेहनत करनी है। कल बच्चों की स्कूल की फीस भरनी है। कहीं मकान मालिक इस साल मकान का किराया बढ़ा न दें। उसे मंदिर बने न बने, मस्जिद बने न बने या किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। उसे तो चाहिए बस दो वक्त की रोटी। तो फिर कौन है वो जो धर्म को लेकर झगड़े करा रहा है, या फिर ये धर्म के ठेकेदार ही है जो खुद के हित के लिए सबको बांट रहे हैं। खैर जो भी हो, यहां तो अब लोग महाभारत की तरह तीर कमान के युद्ध से ज्यादा न्यूज़ चैनल की डिबेट देखना पसंद करते हैं।


 देश दुनिया में करीबन 1000 समाचार चैनल चल रहे हैं। सभी चैनल्स पर हर सुबह समाचार की जगह धर्म बेचा जाता है। उन मुद्दों पर जिससे न तो जनता का सरोकार होता है न ही उनकी किसी समस्या का निदान हर रोज किसी नेता के बेतुके बयान ना समझों के फतवे और भगवान के नाम पर होती है। मंदिर की जुबानी जंग और निर्णय और भी हास्यपद रहता है। अभी दौर चुनावों का है, गुजरात में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां अपना दम ख़म दिखा रही है, लेकिन टीवी डिबेट में बहस चल रही हिन्दू और गेरहिन्दू विवाद पर धर्मो की बांट उनसे किस तरह से टीआरपी खरीदी जा सकती है। डिबेट में बात गधों पर होगी, किसी ने किसी का सर कलम करने की बात कही तो समझ लीजिए की टीवी डिबेट में एक दो घंटे का प्रोग्राम तैयार और इसके लिए अच्छे खासे स्पोंसर भी मिल जाते हैं।

Vivek Upadhya

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