बेनामी संपत्ति की पहचान का ढांचा तैयार, कार्रवाई कब?
बेनामी संपत्ति की पहचान का ढांचा तैयार, कार्रवाई कब? Anonymous Property
नोटबंदी के बाद कालेधन के विरुद्ध मुहिम का अगला निशाना बेनामी सम्पतियां हो सकती है। प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में इस पर खुलकर बोल चुके हैं। दरअसल, 1988 में ही ‘बेनामी प्रॉपर्टी प्रोहिबिशन एक्ट’ बनाया गया था किंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण तत्कालीन सरकार और बाद की सरकारों ने इस कानून को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
वर्तमान सरकार ने इस कानून में संशोधन कर ‘बेनामी प्रॉपर्टीज प्रोहिबिशन अमेंडमेंट एक्ट 2016’ लाया। इसमें अधिकतम तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान बदलकर अधिकतम सात साल की सजा तथा बेनामी सम्पति जब्त करने का प्रावधान जोड़कर इसे 1 नवंबर 2016 से लागू कर दिया गया है।
असल में बेनामी संपत्ति उसे कहा जाता है, जब संपत्ति का रजिस्ट्रेशन किसी और के नाम पर होता है तथा पैसे का भुगतान कोई और ही करता है। सरकारें इसलिए भी इस मुद्दे पर कुछ करने से घबराती थीं, क्योंकि देश में अधिकतर बेनामी संपत्ति राजनेताओं, अधिकारियों और माफिया की है। सामान्य नागरिक का जीवन तो अपने हक का एक घर बनाने में ही बीत जाता है। ‘आदर्श घोटाला’ बेनामी संपत्ति का सबसे बड़ा जीता-जागता उदाहरण है, जहां महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने रिश्तेदारों के लिए संपत्ति का अर्जन किया। इसी बिल्डिंग में महाराष्ट्र के कई नेताओं ने दूसरों के नाम पर संपत्ति ले रखी थी।
अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में गिरफ्तार पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी के बारे में सीबीआई सूत्रों का दावा है कि उन्होंने रिश्वत में ली नकदी से करोड़ों रुपए की कम से कम चार संपत्ति खरीदीं।
वास्तव में इस कानून को अगर 1988 में पूरी तरह से लागू कर दिया जाता तो आज देश में भ्रष्टाचार और कालेधन की स्थिति कुछ और ही होती। अब प्रधानमंत्री के इरादे देखकर स्पष्ट है कि इन बेनामी संपतियों की पहचान के लिए संस्थागत ढांचा तैयार कर लिया गया है और जल्द ही बेनामी संपत्ति धारकों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक होगी ऐसा लगता है.
-अजय धवले